मुझे लिखना है
हाँ , बहुत कुछ लिखना है
किन्तु
कहाँ से शुरू करूँ ?
क्या लिखूँ प्रारंभ में ?
एक पंक्ति में
लटकते हुए
अनगिनत
रंगीन बल्बों की तरह
कई-कई बातें ....
शिकायतें , आक्रोश , क्षोभ-
ग्लानि , दुःख , पश्चाताप...
और
इन्हीं के बीच
दिपदिपाते जुगनू
क्षणिक खुशियों के !
किस को कहाँ स्थान दूँ ?
कहाँ-कहाँ टाँक दूँ ?
किस-किस को ...
बस
इसी कशमकश में
जूझने लगता हूँ ..
जब भी उठाता हूँ-
कलम और कागज़
और
हर बार रह जाता है
अलिखित
बहुत कुछ......