मुक्तक
इतना चाहो न मुझको मैं डर जाऊँगा ।
दिल का शीशा जो टूटा बिखर जाऊँगा ।
गर निगाहों से मुझको गिराया कभी ,
जाऊँगा, पर न जाने कहाँ जाऊँगा ।
इतना चाहो न मुझको मैं डर जाऊँगा ।
दिल का शीशा जो टूटा बिखर जाऊँगा ।
गर निगाहों से मुझको गिराया कभी ,
जाऊँगा, पर न जाने कहाँ जाऊँगा ।