पावस के दोहे
वर्षा ऋतु मनभावनी, आइ गयी रसधार |
ताप दग्ध धरती पड़ी, अमृत की बौछार |
वन उपवन थे जल रहे, दुसह ताप की मार |
वर्षा ने शीतल किया, तन मन छुवे बयार |
दादुर धुनि मनभावनी, टर-टर करत पुकार |
झन झन झन जियरा हरै, झिल्ली की झनकार |
गोरी भीगे द्वार पर, उर उमगा अनुराग |
तन मन व्याकुल पीव बिन, जरै विरह की आग |