Wednesday, July 27, 2011

ये भारत है प्यारे ! बिलायत नहीं है

ज़माने   की  नज़रे  इनायत   नहीं है |
मगर फिर भी कोई शिकायत नहीं है |

उसी  के   हैं   चर्चे , तुम्हारे  शहर  में ,
जो अब इस जहां में,सलामत नहीं है |  

यहाँ  लोग  पूजेंगे, जब  हम न  होंगे  
ये भारत है  प्यारे!  विलायत नहीं है | 

जो  सच  बोलता है , अकेला  खड़ा है ,
उसे आज  हासिल , हिमायत नहीं है |

जो शब्दों में उतरा, वो है दर्द दिल का ,
मेरा  शेर  'झंझट' , हिकायत  नहीं है |

Monday, July 18, 2011

कोई ऐसी प्रीति करे तो

                 कोई ऐसी प्रीति करे तो 
प्रेम भवन की ड्योढ़ी पर ही, काट के अपना शीश धरे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
      
               डरता   कहाँ   मरण  के  भय से 
               कोई     प्यार    निभाये      ऐसे 
               जल जाना ही जिसकी परिणति 
               नेह   पतिंगे   का   ज्यों   लौ  से 
प्रेम यज्ञ  की ज्वाला में , बन हव्य ,स्वयं को हवन करे तो ||कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

               मछली जल में ही जीती है 
               सदा   प्रेम अमृत  पीती  है 
               पर विछोह होते ही पल में 
               प्राण निछावर  कर देती है 
कोई देवता के चरणों में , अर्पित जीवन सुमन करे तो ||कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

               प्रीति  चन्द्र से  करे चकोरी 
               निरखे सदा  प्रेम रस  बोरी 
               जीवन   इंतज़ार  में   बीते 
               मगर न टूटे आश की डोरी 
अगम,अलभ्य रूप से ऐसी , चाहत की इक डोर जुड़े तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

               जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
               काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
               त्याग और बलिदान का पथ है, 
               प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
               

Saturday, July 9, 2011

इंसान और राक्षस

दिल करता है 
नोच डालूँ नकाब 
अपने चेहरे का 

नोच-नोच कर फेंक दूं 
वे सारे पर सुर्खाब के  
जो लोगों ने 
जबरदस्ती 
मुझमे जमा रक्खा है 

मैं 
जो अब तक 
आदमी नहीं बन सका 
बेवजह 
लोगों ने 
फ़रिश्ता बना रक्खा है 

भरी बाज़ार में नंगा कर दूँ
अपने अंतस में छिपे शैतान को 
और
 चिल्ला-चिल्ला कर बता दूँ
हर खासो आम को 
अपनी असलियत 
दिखा दूँ ...
शराफत के परदे में 
पल रही हैवानियत 

जिंदगी और मौत 
में 
क्या फर्क है ....
भूल जाऊँ
पश्चाताप की आग में जलूँ
और जलकर 
यदि निखर सकूँ कुंदन सा
तो निखर जाऊँ 

और यदि नहीं 
तो अपने अंतस के राक्षस को 
मजबूती से पकड़कर 
उसी के साथ.....
अपने इंसान के हाथों 
फाँसी का फंदा बनाकर 
खड़ा-खड़ा  झूल जाऊँ