पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ , पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय | क्रन्तिकारी समाजसुधारक एवं जनकवि संत कबीर दासकी ये पंक्तियाँ हमेशा प्रासंगिक रही हैं और रहेंगी | हम कितने भी पढ़े-लिखे और विद्वान क्यों न हों किन्तु यदि प्रेम का पाठ नहीं पढ़ा तो कोरा पांडित्य किस काम का?
प्रेम लौकिक हो या अलौकिक , इंसान से हो या भगवान से , प्रेम तो प्रेम ही है | आपसी भाईचारा , मेलमिलाप , एकदूसरे के सुख-दुःख को समझना और एकदूसरे के काम आना - ये सब प्रेम की परिधि में ही तो आते हैं ! कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा जहाँ विषपान तक कर लेती है वहीँ भक्त रसखान अपने कृष्ण के ग्वालसखा बनकर गोकुल में ही बसने की इच्छा अगले जन्म के लिए भी रखते हैं :-
"मानुष हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन |"
हमारा हिन्दुस्तान भिन्न- भिन्न धर्मों , जातियों , वर्गों को समेटे अनेकता में एकता का सन्देश देने वाला देश है | गाँव हो या शहर , हर जगह हिन्दू - मुसलमान भाई भाईचारे के साथ, बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार रहकर ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवनयापन करते हैं | आज भी हमारे गाँव में "सत्यनारायण कथा " में मुसलमान भाई सपरिवार शामिल होते हैं तो हिन्दूभाई भी सपरिवार मुहर्रम के मौके पर ताजिया रखते हैं और बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं | रामू और रमजान एक दूसरे के पड़ोसी हैं | एक दूसरे के सुख-दुःख के भागीदार हैं | "बढ़ती महंगाई में रोटी-दाल कैसे चले ?" इस पर दोनों साथ-साथ सरकार और व्यवस्था को कोसते भी हैं |
बहरहाल अगले कुछ दिनों में 'अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद ' में विवादित स्थल के मालिकाना हक का फैसला उच्च न्यायालय से आने वाला है | अदालत से जो भी फैसला आये उसका सम्मान करें | असहमति की स्थिति में दोनों पक्षों को सर्वोच्च न्यायालय जाने का विकल्प है | फिर किस बात की झंझट ? इससे रामू और रमजान के आपसी प्रेम-व्यवहार में कोई दरार क्यों आये ? हम सबसे पहले इंसान हैं -भारतीय हैं | हमारा सबसे बड़ा धर्म-मानवधर्म है | फिर हम क्यों न शायर इकबालजी की इन पंक्तियों को अपनी असल जिंदगी में उतारें :--
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ,
हिंदी हैं हम , वतन है हिंदोस्तां हमारा |
बहरहाल अगले कुछ दिनों में 'अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद ' में विवादित स्थल के मालिकाना हक का फैसला उच्च न्यायालय से आने वाला है | अदालत से जो भी फैसला आये उसका सम्मान करें | असहमति की स्थिति में दोनों पक्षों को सर्वोच्च न्यायालय जाने का विकल्प है | फिर किस बात की झंझट ? इससे रामू और रमजान के आपसी प्रेम-व्यवहार में कोई दरार क्यों आये ? हम सबसे पहले इंसान हैं -भारतीय हैं | हमारा सबसे बड़ा धर्म-मानवधर्म है | फिर हम क्यों न शायर इकबालजी की इन पंक्तियों को अपनी असल जिंदगी में उतारें :--
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ,
हिंदी हैं हम , वतन है हिंदोस्तां हमारा |
umda post !
ReplyDeleteBahut bahut achchi post!!! Shukriya!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!