चारों ओर फैली हुई आग अलगाव की है,
ऐसा करो ज्योति देशप्रेम की जगी रहे |
एकता के सूत्र में बंधा रहे समूचा देश,
प्रेमरस में सदा मनुष्यता पगी रहे |
बकवेशधारियों को स्वार्थ के पुजारियों को,
जड़ से मिटा दे देख दुनिया ठगी रहे |
ज्योतिपुंज ऐसी ज्योति जिन्दगी को दे दे,
सदा लेखनी हमारी देशहित में लगी रहे |
उत्तम कविता ........
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