Wednesday, September 8, 2010

मुक्तक

    ऐसे अंधियारे में   सविता की   बात करते हो |
   प्यार की , स्नेह की , ममता की बात करते हो |
   जहाँ कुर्सी   बड़ी है    देश से ,      मनुजता से ,      
   यार किस दौर में    कविता की बात करते हो ?
 
   हर तरफ छाया हुआ है धुआं काला-काला |
   देश अब कौन तेरी फ़िक्र है    करने  वाला |
   तेरे  टुकड़े हजार  करनेवाले हैं  तो   बहुत ,
   कोई दिखता नहीं तेरी शान पे मरनेवाला |

   दिल में सहेजे  दर्द का  सारा  ज़हान हूँ |
   चीखों से- कराहों से  भरा  आसमान हूँ |
   अपनों ने किया जर्जर फिर भी महान हूँ |
   कवि नहीं हूँ दोस्त मैं हिन्दोस्तान हूँ |

No comments:

Post a Comment