ऐसे अंधियारे में सविता की बात करते हो |
प्यार की , स्नेह की , ममता की बात करते हो |
जहाँ कुर्सी बड़ी है देश से , मनुजता से ,
यार किस दौर में कविता की बात करते हो ?
हर तरफ छाया हुआ है धुआं काला-काला |
देश अब कौन तेरी फ़िक्र है करने वाला |
तेरे टुकड़े हजार करनेवाले हैं तो बहुत ,
कोई दिखता नहीं तेरी शान पे मरनेवाला |
दिल में सहेजे दर्द का सारा ज़हान हूँ |
चीखों से- कराहों से भरा आसमान हूँ |
अपनों ने किया जर्जर फिर भी महान हूँ |
कवि नहीं हूँ दोस्त मैं हिन्दोस्तान हूँ |
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