Wednesday, October 6, 2010

संबंधों का दर्द

स्वारथरत सम्बन्ध मिले सब,बंधन गांठ लिए |
प्रीति मिली तो नागिन जैसी सुन्दर,गरल हिये |
ह्रदय मिला तो काजल जैसा, मन मटमैला पानी |
चित्त लिए दुर्गम  चंचलता , बोल कर्ण सा दानी  |
भुजा कटी तो भुजा न रोई, शीश कटा धड़ हँसता |
पेट अकेला   बड़वानल सा,   क्षार   क्षीरनद   करता  |
कंचन के  प्यासे हो भँवरे ,  महक   सुमन  की भूले |
स्वर मिठास-आवरण  लिए ,  कैसे  अंतर्मन  छू ले ?



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