स्वारथरत सम्बन्ध मिले सब,बंधन गांठ लिए |
प्रीति मिली तो नागिन जैसी सुन्दर,गरल हिये |
ह्रदय मिला तो काजल जैसा, मन मटमैला पानी |
चित्त लिए दुर्गम चंचलता , बोल कर्ण सा दानी |
भुजा कटी तो भुजा न रोई, शीश कटा धड़ हँसता |
पेट अकेला बड़वानल सा, क्षार क्षीरनद करता |
कंचन के प्यासे हो भँवरे , महक सुमन की भूले |
स्वर मिठास-आवरण लिए , कैसे अंतर्मन छू ले ?
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