सीख लिया इससे ही रोते-रोते हँसना भी,
गम से बड़ा न कोई अपना अज़ीज़ है |
जिंदगी के जहर को पल-पल पीना,और-
हँस-हँस कर इसे जीना बड़ी चीज है |
कोई कहता है, " यार बड़ा है तमीजदार"
कोई कहता है , " यार बड़ा बेतमीज है |"
लगे हैं पैबन्दों पे पैबंद मेरे मीत , यह-
जिंदगी हमारी इक गरीब की कमीज़ है |
सुरेन्द्र बहादुर सिंह " झंझट गोंडवी " जी
ReplyDeleteक्या बात है कविराज ! बहुत शानदार कवित्त लिखा है आपने ।
जिंदगी हमारी इक गरीब की कमीज़ है
पढ़ कर आनन्द आ गया । बधाई !
आपके ब्लॉग पर लगी कुछ और रचनाएं भी पढ़ीं , सब पसंद आईं ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार