संगमरमर की तरासी मूर्ति हो तुम,
या अजंता की कोई जीवित कला |
याकि हो अभिशप्त उतरी मृत्युभू पे ,
देवबाला हो कि कोई अप्सरा |
शांत यमुना सी- सुकोमल सुमन सी ,
श्याम घन सम केश सुंदर कामिनी |
याकि भादौं की अँधेरी रात में,
चीर घन चमकी हो चंचल दामिनी |
स्वर्ण सी काया महक चन्दन उठे ,
या सुमन की मधुर मोहक गंध हो |
या मनुज-स्वप्नों की अदभुत सुन्दरी ,
या किसी कवि का सरस मधु-छंद हो |
सुरेन्द्र जी...... बहुत ही उम्दा ख्याल। धन्यवाद
ReplyDeleteamitji, itne lagav aur utsahvardhan ke liye bahut abhari hoon
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