कल जब मिले थे हम-तुम
तुम पत्थर थी और मैं लोहा
तुमने छू लिया मुझे
मैं सोना बन गया और तुम-
पारस पत्थर
मैं अपनी चमक में गुम होता गया
और तुमने कई लोहे के टुकड़ों को-
बना दिया सोना अपने स्पर्श से
आज मैं सोचता हूँ कि
मेरा और तुम्हारा स्पर्श ही -
न हुआ होता तो अच्छा था
तुम पत्थर और मैं लोहा
कम से कम एक साथ
खुरदरी जमीन पर पड़े-पड़े
एक दूसरे को प्यार से
एकटक देखते तो रहते
बहुत सुंदर और बहतरीन रचना...
ReplyDeleteउत्तम रचना....बेहतरीन भावों से सजी लाजवाब पंक्ति
ReplyDeleteoh! bahut hi lazabab rachna. dil ki ehsas ko sparsh karti hui.
ReplyDelete4/10
ReplyDeleteऔसत दर्जे की मौलिक रचना
कुछ नया सा कहने की कोशिश की है किन्तु ठीक से पाठक के दिल तक नहीं पहुंचती
nayapan liye hai aapki kavita.....
ReplyDeletevery nice.....
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