Wednesday, August 25, 2010

गाँधी जी के तीनो बन्दर | जल्लादों से घिरे हैं शायद |

उनके    दिन  बहुरे   हैं शायद |
बस थोडा   सा  गिरे हैं शायद |
नैतिकता    की  बातें   करते ,
सब के सब सिरफिरे हैं शायद |
खुद   से   नज़रें   चुरा रहे हैं  |
कई बार   हम मरे   हैं शायद |
गाँधी  जी  के  तीनो  बन्दर  |
जल्लादों  से  घिरे  हैं  शायद |
कानाफूसी   गली  गली   में ,
कुछ  बागी  उभरे  हैं   शायद |
घुप्प   अंधेरे  के   सागर  में  |
फिर  जुगनू  उतरे   हैं शायद |

No comments:

Post a Comment