Friday, January 14, 2011

जो कहना है कहते जाएँ

क्यों उलझें  हम शब्दजाल में  | 
 सुलझे-अनसुलझे    सवाल   में |
सागर की लहरों पर चढ़कर ,
चल  पानी  सा    बहते    जाएँ | जो कहना है कहते जाएँ
आग लगी है   नंदन वन   में   |
ताप-ताप हर घर आँगन में |
जलते   जीवन  की   बेला में ,
कैसे    राग मल्हार     सुनाएँ | गर दहना है दहते जाएँ
फूलों   में   तेज़ाब      भरा  है |
फिर भी उपवन  हरा-भरा है |
भँवरों की साजिश में फँसती ,
तितली को  कैसे    समझाएँ | सिर धुनना है धुनते जाएँ
सूनी   माँग    दर्द     ढोती  है |
सुन्दरता    बेबस     रोती   है |
चेहरे  पर   मरुथल  फैला है ,
फिर   कैसे    श्रृंगार   सजाएँ | बहते नैना बहते जाएँ
भावों  का    पंछी    बेपर   है |
और    कल्पना  भी बेघर है |
शब्द   हो   गए     गूंगे-बहरे ,
कैसे  कोई   गीत     सुनाएँ | जो सहना है सहते जाएँ 

27 comments:

  1. क्यों उलझें हम शब्दजाल में |
    सुलझे-अनसुलझे सवाल में |


    surendra ji sundar panktiyan

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  2. आग लगी है नंदन वन में |
    ताप-ताप हर घर आँगन में |
    जलते जीवन की बेला में ,
    कैसे राग मल्हार सुनाएँ | गर दहना है दहते जाएँ
    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    जीवन सन्दर्भ का अच्छा खासा नमूना खिंचा है आपने शब्दों के माध्यम से ...आपकी कविता का कोई जबाब नहीं ..अपनी लेखनी को यूँ ही हमेशा गतिशील रखें ..आपका आभार

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  3. "भावों का पंछी बेपर है |
    और कल्पना भी बेघर है |
    शब्द हो गए गूंगे-बहरे
    कैसे कोई गीत सुनाएँ |
    जो सहना है सहते जाएँ "

    बहुत खूब
    बहुत सुन्दर रचना
    आपको बधाई

    आभार

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  4. उत्तम प्रस्तुति...

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  5. सुन्दर सुन्दर सुन्दर

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  6. सुरेन्द्र सिंह जी....

    क्या ख़ूब लिखा है! बेहद उम्दा प्रस्तुति!

    आभार।

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  7. सुरेन्द्र सिंह जी....

    क्या ख़ूब लिखा है! बेहद उम्दा प्रस्तुति!

    आभार।

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  8. बेहतरीन प्रस्तुति

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  9. भावों का पंछी बेपर है |
    और कल्पना भी बेघर है |
    शब्द हो गए गूंगे-बहरे,
    कैसे कोई गीत सुनाएँ | जो सहना है सहते जाएँ

    बहुत खूब !

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  10. बेहद उम्दा प्रस्तुति!
    आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"

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  11. भाषा और कहन पर काफ़ी अच्छी पकड़ है सुरेंद्र भाई, बधाई|

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  12. क्यों उलझें हम शब्दजाल में |
    सुलझे-अनसुलझे सवाल में |
    सागर की लहरों पर चढ़कर ,
    चल पानी सा बहते जाएँ |
    जो कहना है कहते जाएँ
    काफी खुबसुरत एहसास भरे है आपने शब्दों के द्वारा। धन्यवाद।

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  13. फूलों में तेज़ाब भरा है ,
    फिर भी उपवन हरा-भरा है ।
    भँवरों की साजिश में फँसती,
    तितली को कैसे समझाएँ ।

    वाह, क्या बात है।

    सुंदर बिम्बों से सजा एक उत्तम गीत लिखा है आपने।
    पढ़कर मन मुग्ध हुआ।

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  14. ACCHI RACHNA.... WITH ''KEEP GOING'' SPIRIT

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  15. वाह! पहले अंतरे ने ही मन मे जादू सा कर दिया रचना के प्रति! बहुत ही रिदम मे और बहुत-बहुत ही सुन्दर रचना. इस विश्वश रचना के लिए सच मे आभार प्रतुस्ती के लिए.
    -
    सागर by AMIT K SAGAR

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  16. फूलों में तेज़ाब भरा है |
    फिर भी उपवन हरा-भरा है |
    भँवरों की साजिश में फँसती ,
    तितली को कैसे समझाएँ

    behad sundar....

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  17. क्यों उलझें हम शब्दजाल में |
    सुलझे-अनसुलझे सवाल में |
    सागर की लहरों पर चढ़कर ,
    चल पानी सा बहते जाएँ ...
    ....वाह, क्या बात है...बेहद उम्दा प्रस्तुति.

    सुन्दरता बेबस रोती है |
    चेहरे पर मरुथल फैला है ,
    फिर कैसे श्रृंगार सजाएँ....

    आपका आभार ....

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  18. आग लगी है नंदन वन में |
    ताप-ताप हर घर आँगन में |
    जलते जीवन की बेला में ,
    कैसे राग मल्हार सुनाएँ ..

    BAHUT KHOOB ... SACH KAHA HAI JAB GHAR JAL RAHA HOTA HAI TAB RAAG MALHAAR GAANA AASAAN NAHI HOTA ... DESH KE BHI AAJKAL YAHI HAALAAT HAIN ...

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  19. फूलों में तेज़ाब भरा है |
    फिर भी उपवन हरा-भरा है |
    भँवरों की साजिश में फँसती ,
    तितली को कैसे समझाएँ

    भाई झंझट जी,
    बड़ी तेज कलम है आपकी !
    सुन्दर गीत के लिए धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  20. फूलों में तेज़ाब भरा है |
    फिर भी उपवन हरा-भरा है |
    भँवरों की साजिश में फँसती ,
    तितली को कैसे समझाएँ | सिर धुनना है धुनते जाएँ

    इस अप्रतिम रचना के लिए मेरी बधाई

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  21. आपकी सहनशीलता से भाव-पंछी को पर, कल्पना को घर और शब्दों को मधुर ध्‍वनि मिली है.

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  22. surendra ji..behadd umda ..bahut sunder..
    भावों का पंछी बेपर है |
    और कल्पना भी बेघर है |
    शब्द हो गए गूंगे-बहरे ,
    कैसे कोई गीत सुनाएँ | जो सहना है सहते जाएँ

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  23. wah kya baat kahi hai..bahut koob.

    फूलों में तेज़ाब भरा है ,
    फिर भी उपवन हरा-भरा है ।
    भँवरों की साजिश में फँसती,
    तितली को कैसे समझाएँ ।

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  24. शब्‍दों का सच बुनते जायें।

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