Tuesday, February 1, 2011

'हिस्सा.....

भेड़िया जैसा
वहशी आँखों से घूरता
थाने का दारोगा बोला -
'क्यों बे !
कहाँ से आया है ?
क्या मुसीबत लाया है ?'
थर-थर कांपता..
शरीर पर चढ़े चीथड़ों को ढांपता..
सहमता...गिड़गिड़ाता..
हरखू बोला ;
'माई-बाप !
गड़हिया गाँव से आया हूँ..
घर में चोरी हो गयी...
चोर सब कुछ उठा ले गए
कुछ भी नहीं बचा..हमारे पास
अब तो बस , आप ही की है आश
हुजूर ! मुझे न्याय दिलाइये
मुझे   बचाइए
नहीं तो
थाने तक आने के जुर्म में
वे हमें सतायेंगे
हम खाली पेट भी
जिंदा नहीं रह पाएंगे '
दारोगा हँसा....बाघ की हँसी
बुदबुदाया--'साले बेईमान चोर !
सब उठा ले गए
हमारा हिस्सा भी खा गए !'
फिर घूमा और डपटकर बोला--
'जा , भाग जा
आइन्दा जब चोरी हो
और कुछ बच जाये
तभी मेरे पास आना
कंगाल बनकर...खाली हाथ
थाने में मुँह मत दिखाना '

19 comments:

  1. वाह साहब पुलिस वालो की सच्चाई को कितनी सरलता से ब्यान कर दिया
    वाह
    बेहतरीन कविता के लिए बधाई

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  2. 'जा , भाग जा
    आइन्दा जब चोरी हो
    और कुछ बच जाये
    तभी मेरे पास आना
    कंगाल बनकर...खाली हाथ
    थाने में मुँह मत दिखाना '
    waah, karara vyangya

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  3. सटीक अभिव्यक्ति। पुलिस वाले कोई ऐरे गैरे तो नही कि हर गरीब वहाँ चला आये उनके अपने भी मिज़ाज़ हैं । वैसे गरीब की यहाँ सुनता भी कौन है। शुभकामनायें।

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  4. सच और सच......आभार.

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  5. ये तो भिगो कर जुता मारा है आपने। उपर वाला किसी को थाने का मुॅह न दिखाए। करारा व्यंग्य।

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  6. ओह !!!!!! ये भी कैसा सच है .पर क्या करें है तो यही सच

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  7. ओह! पुलिस की दरिंदगी को दर्शाती रचना……………बेहद मार्मिक चित्रण्।

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  8. आइन्दा जब चोरी हो
    और कुछ बच जाये
    तभी मेरे पास आना
    कंगाल बनकर...खाली हाथ
    थाने में मुँह मत दिखाना '....

    सच्चाई को वयां करता भ्रष्टाचार पर करारा व्यंग.बधाई।

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  9. पुलिसिया तंत्र की हकीकत बयां करती रचना।

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  10. बहुत सुंदर ,हकीकत बयां करती रचना, बधाई।

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  11. झकझोर डालने वाली रचना...

    सटीक करारा व्यंग्य प्रहार...

    साधुवाद आपका इस सार्थक रचना के लिए...

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  12. थाने तक आने के जुर्म में
    वे हमें सतायेंगे
    हम खाली पेट भी
    जिंदा नहीं रह पाएंगे '
    दारोगा हँसा....बाघ की हँसी
    बुदबुदाया--'साले बेईमान चोर !
    सब उठा ले गए
    हमारा हिस्सा भी खा गए !'
    फिर घूमा और डपटकर बोला--
    'जा , भाग जा
    आइन्दा जब चोरी हो
    और कुछ बच जाये
    तभी मेरे पास आना
    कंगाल बनकर...खाली हाथ
    थाने में मुँह मत दिखाना '..............

    ग़ज़ब का कटाक्ष! सच्चाई वयां करती रचना, बधाई!

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  13. ye aaj ki sachchai hai.ye matra ek kataksh nahi hai prashasan ki vifalta hai jo aise naukar rakh desh ko gahre andhkar me dhakel rahi hai..

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  14. कंगाल बनकर...खाली हाथ
    थाने में मुँह मत दिखाना
    bahut achchi tarah ek kadwe sach se samna kraya hai.

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  15. पुलिसिया तंत्र की हकीकत का उम्दा रेखांकन ..... बेहतरीन प्रस्तुति

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