आने को आया है मौसम मनभावन
आग राग गाती हैं मौसमी बहारें |
सूखे जले पत्तों को बुहारतीं बयारें |
गालों पर फागुन है आँखों में सावन ...
कोयल मृदुबैनी है तन-मन की काली |
कौए से करवाती शिशु की रखवाली |
छलनाओं के कर में सपनों का दरपन...
इच्छायें ऊँची ज्यों कचरे पर कचरा |
हाथों से गर्दन तक फूलों का गजरा |
कोठे पर मन बैठा मंदिर में नरतन.....
आशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
जीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
गले बँधी टाई सा हार का अपनपन ....
आदरणीय सुरेन्द्र सिंह जी
ReplyDeleteनमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteकोयल मृदुबैनी है तन-मन की काली |
ReplyDeleteकौए से करवाती शिशु की रखवाली |
koyal kitni chalak hoti hai, per mithi taan suna sabko bhram me rakhti hai
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ReplyDeleteकोठे पर मन बैठा मंदिर में नरतन.....
This is the irony ! What we are and what we pose , are entirely different. Faces are masked. Tough to know the truth.
Beautiful creation !
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आग राग गाती हैं मौसमी बहारें |
ReplyDeleteसूखे जले पत्तों को बुहारतीं बयारें |
दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती.
शुभकामनाएं.
आग राग गाती हैं मौसमी बहारें |
ReplyDeleteसूखे जले पत्तों को बुहारतीं बयारें |
सुन्दर प्रस्तुति .. होली की अग्रिम शुभकामनायें ....
दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती.
ReplyDelete.. होली की अग्रिम शुभकामनाएं
गज़ब की रचना है ……………दिल को छू गयी।
ReplyDeleteआशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
ReplyDeleteजीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
नवीन प्रयोग और बहुत सार्थक ....कमाल है भाई
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteगालों पर फागुन है आँखों में सावन ..
ReplyDeleteझंझट जी , मुझे तो यह प्रयोग बहुत अच्छा लगा बधाई
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें
bahut khoob...
ReplyDeleteकोयल मृदुबैनी है तन.मन की काली ।
ReplyDeleteकौए से करवाती शिशु की रखवाली ।
छलनाओं के कर में सपनों का दरपन।
वाह, क्या बात है, वाह..
नवीन प्रतीकों से सजे इस उत्तम नवगीत के लिए बधाई।
आदरणीय सुरेन्द्र सिंह जी, बहुत ही सुन्दर नवगीत, आभार.
ReplyDeleteहोली का पवन पर्व की आपको अग्रिम शुभकामनाएं.
इच्छायें ऊँची ज्यों कचरे पर कचरा |
ReplyDeleteहाथों से गर्दन तक फूलों का गजरा |
बहुत ही सुन्दर नवगीत बधाई
उत्तम प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteगुल ने गुलशन से गुलफाम भेजा है,
ReplyDeleteसितारो ने आसमान से सलाम भेजा है,
मुबारक़ हो आपको होली का त्योहार,
मेने दिल से यह पैगाम भेजा है!!
सभी मित्रों को होली की अग्रिम शुभकामनाएँ
मेरी तरफ से सवाई सिंह(आगरा )
कोठे पर मन बैठा मंदिर में नरतन.....
ReplyDeleteआशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
जीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
गले बँधी टाई सा हार का अपनपन ....
asha to fuse bulb ke holder me atki........kya kahne hain..:)
आद. सुरेन्द्र जी,
ReplyDeleteआशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
जीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
गले बँधी टाई सा हार का अपनपन ....
नए विम्बों के साथ अभिनव प्रतिमानों को स्थापित करता आपका नव गीत पाठक के दिलों को छूकर स्पंदित करने में सक्षम है !
आभार !
आने को आया है मौसम मनभावन
ReplyDeleteआग राग गाती हैं मौसमी बहारें |
सूखे जले पत्तों को बुहारतीं बयारें |
गालों पर फागुन है आँखों में सावन ...
waah waah !
bahut badhiya andaaz aapki rachna ka !
ReplyDeleteआशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
ReplyDeleteजीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
गले बँधी टाई सा हार का अपनपन ...
सुन्दर प्रतीक नए विम्बों के साथ आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है।
शुभकामनायें।
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कोठे पर मन बैठा मंदिर में नरतन.....
ReplyDeleteWAH WAH........
आशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
ReplyDeleteजीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
बहुत सुन्दर तरीके से अपनी भावनाओं का चित्रण. वाह...
ब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?
एकाधिक बार पढ़ा। आगे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं।
ReplyDeleteसुन्दर मनभावन गीत!
ReplyDeleteआशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
ReplyDeleteजीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
अच्छे झटके दिये वाह बधाई।
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/
बहुत प्यारा नवगीत है ,निम्न पंक्तियों में जदीदियत है,नया और मज़ेदार प्रयोग है.
ReplyDeleteआशा तो फ्यूज बल्ब होल्डर में अटकी |
जीत हाथ आते ही मछली सी छटकी |
गले बँधी टाई सा हार का अपनपन ...
बधाई आपको इस सुन्दर नवगीत की.
बहुत सुंदर होली कविता
ReplyDeleteआप सभी होली की हार्दिक शुभकामनाये
ब्लॉग पर अनियमितता होने के कारण आप से माफ़ी चाहता हूँ
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ReplyDeleteकोयल मृदुबैनी है तन-मन की काली |
ReplyDeleteकौए से करवाती शिशु की रखवाली |
कुछ नया सा पढने को मिला ......
तो आपको नवगीत में भी महारत हासिल है .....
बहुत खूब .....!!
सुरेन्द्र जी आपका नवगीत बहुत ही आकर्षक लगा। बिम्बों में अभिनव प्रयोग सार्थक हैं।
ReplyDeleteभाई सुरेन्द्र जी अच्छी कविता के लिए बधाई और होली की रंगभरी शुभकामनाएं |
ReplyDeleteइच्छायें ऊँची ज्यों कचरे पर कचरा |
ReplyDeleteहाथों से गर्दन तक फूलों का गजरा |
कोठे पर मन बैठा मंदिर में नरतन.....
बहुत सार्थक सुन्दर रचना..बधाई..होली की हार्दिक शुभकामनायें!
कोयल मृदुबैनी है तन-मन की काली |
ReplyDeleteकौए से करवाती शिशु की रखवाली |
bahut khubsurat rachna .
परिवार सहित होली की शुभ - कामनाएं |
नवमीत बन मिले, अरे अभी तक कहाँ थे भाई!
ReplyDeleteझंझट से भड़का था आने की हिम्मत न जुटाई
बड़ा प्यारा नवगीत है तारीफ करूँ कितनी अब
इस गीत के साथ ले लो होली की भी बधाई।
खेलैं बूढ़ औ जवान लरिकन संग मा
ReplyDeleteभरी फागुनी उमंग आज अंग-अंग मा
होरिहारन कै फ़ौज चली है बाजै मारू बाजा
एक रंग मा रंगिगे सगरौ रंक होंय या राजा
लिहे हाथ पिचकारी अठिलाय कै चली
भीगी भीगी देह सारी बल खाय कै चली
संगे सखी-सहेली सारी अरराय कै चली
जीजा भागे देखौ साली डुडुवाय कै चली
भाई जी अभी-अभी इतने अछे फगुआ माहौल से मैं चूक ही गया था,,,भगवान का शुक्र है कि आ गया ....कैसे है भाई जी आप होली कि विलंबित शुभकामनायें !!