आप यूँ न रोइए .....आँसू बहाइए !
आज़ाद देश के हैं...जरा मुस्कुराइए !
भुखमरी है देश में फैली तो क्या हुआ ?
सोने से भरी उनकी तिजोरी तो क्या हुआ ?
झोपड़ी है रोती सिसकती तो क्या हुआ ?
बँगलों में कैद देश की हस्ती तो क्या हुआ ?
गोरे गए तो कालों की खिदमत बजाइए !
आज़ाद देश के हैं... जरा मुस्कुराइए !
देखो चोर, माफिया.. आज़ाद हैं यहाँ |
भेंडियों के झुण्ड ही.. आबाद हैं यहाँ |
आज़ाद हुए राज-काज देखने वाले |
आज़ाद हैं वतन की लाज बेंचने वाले |
गद्दारों को अदब से जरा..सर झुकाइए !
आज़ाद देश के हैं ...जरा मुस्कुराइए !
आतंकवाद .... खून की बौछार देखिए |
कश्मीर में अलगाव की फुंकार देखिए |
जनता की जरा चीख औ पुकार देखिए |
नेताओं का अपने वतन से प्यार देखिए |
बापू का नाम...आइए, जमके भुनाइए !
आज़ाद देश के हैं ......जरा मुस्कुराइए !
वोट का अधिकार है.....बस वोट दीजिए |
आराम बड़ी चीज़ है.. .सर ढक के सोइए |
हल्दी में पीली ईंट का... ..चूरन मिलाइए |
खाकर ज़हर भी....मौत के दर्शन न पाइए |
घपले भी हैं..घोटाले भी..खुल के कमाइए !
आज़ाद देश के हैं ..... जरा मुस्कुराइए !
surendraji,
ReplyDeletehar baar ki tarah behtreen
गोरे गए तो कालों की खिदमत बजाइए !
ReplyDeleteआज़ाद देश के हैं... जरा मुस्कुराइए !
.................................
गद्दारों को अदब से जरा..सर झुकाइए !
आज़ाद देश के हैं ...जरा मुस्कुराइए !
.................................
बापू का नाम...आइए, जमके भुनाइए !
आज़ाद देश के हैं ......जरा मुस्कुराइए !
................................
Bahut khoob !
'झंझट'जी जबरदस्त,बहुत खूब,बेमिशाल
ReplyDeleteआपके दिए झटको ने कर दिया बेहाल
आप मुस्कुराने को कहते है ,हमें रोया नहीं जाता
आजादी का जो नाम है,उसे भी खोया नहीं जाता
आप यूँ ही लिखते रहें ,और झंझोड़ते रहें सभी के अंत:करण को.
आपकी सुन्दर अनुपम अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से......झंझट जी
ReplyDeleteबड़ी दमदार कविता !
ReplyDeleteवोट का अधिकार है.....बस वोट दीजिए |
ReplyDeleteआराम बड़ी चीज़ है.. .सर ढक के सोइए |
हल्दी में पीली ईंट का... ..चूरन मिलाइए |
खाकर ज़हर भी....मौत के दर्शन न पाइए |
zabardast rachna
एक बार फिर से एक शानदार रचना
ReplyDeleteसटीक व्यंग
शुभकामनाये
जोर का झटका धीरे से लगा | बेहतरीन रचना |
ReplyDeleteबापू का नाम...आइए, जमके भुनाइए !
ReplyDeleteआज़ाद देश के हैं ......जरा मुस्कुराइए !
सटीक व्यंग ,शुभकामनाये
शानदार कटाक्ष्………………बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआतंकवाद .... खून की बौछार देखिए |
ReplyDeleteकश्मीर में अलगाव की फुंकार देखिए |
जनता की जरा चीख औ पुकार देखिए |
नेताओं का अपने वतन से प्यार देखिए |
बापू का नाम...आइए, जमके भुनाइए !
आज़ाद देश के हैं ......जरा मुस्कुराइए !
बहुत खूब...बहुत मार्मिक...हार्दिक बधाई।
आपकी इस रचना को पढ़ कर साहिर लुधयानवी के तेवर याद आ गए....
ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया
ये इंसां के दुश्मन समाजो की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाज़ों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है|
आपकी उम्दा रचना के लिए आपको पुनः बधाई....
बापू का नाम...आइए, जमके भुनाइए !
ReplyDeleteआज़ाद देश के हैं ......जरा मुस्कुराइए
एक ही शब्द जबरदस्त। साथ ही तीखा कटाक्ष
बहुत सुंदर ढंग से खबर लिया है भाई झंझट जी अपने बधाई और ढेरों शुभकामनाएं |
ReplyDeleteगोरे गए तो कालों की खिदमत बजाइए !
ReplyDeleteआज़ाद देश के हैं... जरा मुस्कुराइए !
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गद्दारों को अदब से जरा..सर झुकाइए !
आज़ाद देश के हैं ...जरा मुस्कुराइए !
स्नेही, मित्र, अग्रज और कवि धर्म के निभाने वाले और माँ शारदे के प्रिय पुत्र ...सुरेन्द्र भैया जी को सादर नमस्कार !
जब आप सजग हैं भाई जी तब तक आम आदमी कि चेतना सुप्त नही हो सकती !!मैं भाग्यशाली हूँ जो आपके संपर्क में आया !
झंझट जी आपकी रचना में करुणा की
ReplyDeleteहिलोरें और व्यंग्य से थपड़ों से मजा
आ गया। प्रेरक प्रस्तुति के लिए साधुवाद!
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प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
वोट का अधिकार है बस वोट दीजिए
ReplyDeleteआराम बड़ी चीज़ है सर ढक के सोइए
हल्दी में पीली ईंट का चूरन मिलाइए
खाकर ज़हर भी मौत के दर्शन न पाइए
कविता में व्यंग्य अपने चरम पर है।
आतंकवाद .... खून की बौछार देखिए |
ReplyDeleteकश्मीर में अलगाव की फुंकार देखिए |
जनता की जरा चीख औ पुकार देखिए |
नेताओं का अपने वतन से प्यार देखिए
सटीक अभिव्यक्ति..... यही हाल है ..यही सच है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति एक - एक शब्द बोलते हुए |
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, वर्तमान हालात को उजागर करती हुई कविता लिखी हुई है
ReplyDeleteदेखो चोर, माफिया.. आज़ाद हैं यहाँ |
ReplyDeleteभेंडियों के झुण्ड ही.. आबाद हैं यहाँ |
आज़ाद हुए राज-काज देखने वाले |
आज़ाद हैं वतन की लाज बेंचने वाले |
सुरेन्द्र जी बहुत ही सार्थक व् बेबाक रचना काश इसे पढ़ लिख लोगों की आँखें खुलें ...
शुक्लभ्रमर ५
Jhanjhat jee, apni aazadi par to muskurahat aai par darun ,vythit , dukhati rag par namak si.. bahut achchhi kataksh..shubhkamna
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteआज़ाद देश के हैं ..... जरा मुस्कुराइए !
ReplyDeleteदेश में व्याप्त तमाम असमताओं पर सटीक व्यंग । आभार...
आतंकवाद .... खून की बौछार देखिए |
ReplyDeleteकश्मीर में अलगाव की फुंकार देखिए |
जनता की जरा चीख औ पुकार देखिए |
नेताओं का अपने वतन से प्यार देखिए |
बेहतरीन कविता
सुन्दर कविता..हकीकत को दर्शाया है आपने!
ReplyDeleteकिन्तु हम सब जानते हुवे भी नहीं समझ पाते.
सार्थक रचना,,,
आज गुड फ्राई डे के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं आपको !!
बहुत खूब।
ReplyDeleteएक अत्यंत ताकतवर कविता... संवेदनशील व्यंग्य...
ReplyDeleteसादर...
.
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी ,
बहुत ही सटीक व्यंग है सत्ता में बैठे जिम्मेदार लोगों की आजादी पर , जो उसका भरपूर गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। और उतना बढ़िया व्यंग है आम जनता पर जो आजाद भारत के नागरिक होते हुए भी गुलामी करने को मजबूर है।
मुस्कुराइए की आप आजाद है !..वाह !..
.
वोट का अधिकार है.....बस वोट दीजिए |
ReplyDeleteआराम बड़ी चीज़ है.. .सर ढक के सोइए |
वाह..क्या खूब ...कटाक्ष किया है...
हार्दिक शुभकामनाएं.
मुस्कुराइए के आप आज़ाद हो...
ReplyDeleteलाचारी का स्वतंत्र सा संवाद हो...
भ्रष्टाचार के तालाब की गाध हो..
लालच के घाव की मवाद हो..
अब इस ज़ख्म पर मौन का मरहम लगाइए...
आज़ाद देश के हैं ..... जरा मुस्कुराइए !
राम राम सुरेन्द्र जी, zeal जी ने शुरू की थी बात उसे आप की नक़ल कर के पूरी करने की कोशिश की है!मै क्षमा चाहूँगा की आज पहली बार यहाँ आया हूँ,आते ही आपकी नक़ल की....
अब आप भी मुस्कुराइए...
कुँवर जी,
क्या बात कही आपने अब मुस्कराइए !...शुभकामनायें !!
ReplyDeleteदेखो चोर, माफिया.. आज़ाद हैं यहाँ |
ReplyDeleteभेंडियों के झुण्ड ही.. आबाद हैं यहाँ |
आज़ाद हुए राज-काज देखने वाले |
आज़ाद हैं वतन की लाज बेंचने वाले |
गद्दारों को अदब से जरा..सर झुकाइए !
सटीक व्यंग किया है .
उफ़ ये आज़ादी.
बहुत सही लिखा है |
ReplyDeleteबधाई |
आशा
kha kar jaher bhi maut ke darshan na paiye.MILAWATKHORON KO FANSI KI SAJA SUNAIYE.FIR CHIRFAD KARke P.M. KARAIYE.CHAURAHE PE UNKA PUTLA LAGAIYE,MUH KALA KARKE JUTE KI MALA CHADHAIYE. BAKI BIRADARI KO SHEKH DETE JAIYE .PHIR NA ROIYE NA ANSU BAHAIYE AZAD HOKE BHAI MERE MUSKURAIYE jai hind
ReplyDeleteगद्दारों को अदब से जरा..सर झुकाइए !
ReplyDeleteआज़ाद देश के हैं ...जरा मुस्कुराइए ...
Ek vyanh bhari muskaan aa jaati hai is lajawaab rachna ko padhne ke baad ... saartka sateek likha hai ...
अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
ReplyDeleteबस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति|तीखा कटाक्ष|
ReplyDeleteगद्दारों को अदब से जरा..सर झुकाइए !
ReplyDeleteआज़ाद देश के हैं ...जरा मुस्कुराइए ...
बहुत करारा व्यंग कसा है आपने आज जी कि सामजिक व्यवस्था पर. कविता सोचने पर मजबूर करती. सार्थक रचना.
"be -adbon ko adab se ,sir jhukaaiye ,
ReplyDeleteek poonchhh aap bhi jaldi ugaaiye ,
maale muft mil rhaa chhakke khaaiye ,
BAHUT ACHCHHA LIKHTEN HAIN JHANJHAT JI
be -jhanjhat ,be -jhijhak bas likhte jaaiye ,
do seeng aap bhi sir pe ugaaiye ,
milten hain jakhm khoob milen ,hanste jaaiye .
veerubhai .
अद्भुत व्यंग्य और ललकार भी
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुरेंद्र जी!
ReplyDeleteअच्छा और सरल तथा सहज लिखते हैं।
शेरो शायरी में उर्दू के अल्फ़ाज़ अच्छे लगते हैं।
परंतु नुक़्ते बग़ैर कभी कभी अजीब लगते हैं।