तम- नाश करने के लिए, कुछ कर दिखाना है हमें |
आलोक भरने के लिए, दीपक जलाना है हमें |
हो देश का कोना कोई, रोता जहां इंसान हो |
दुर्भिक्ष का तांडव हो या घायल हुआ सम्मान हो |
निबलों पे अत्याचार हो, या भ्रष्टता का भार हो |
या विषधरों के अंक में, चन्दन का घर-संसार हो |
सारे दुखों के अंत हित, धनु-शर उठाना है हमें |
रोते हुए हर मनुज को, फिर से हँसाना है हमें |
फन-धारियों ने डँस लिया,सरसब्ज़ हिन्दुस्तान को |
वे कर रहे नीलाम हैं अब, मुल्क के सम्मान को |
घनघोर जंगल-राज जब , छाई घटा काली यहाँ |
फिर,कौन सा आलोक ? कैसा पर्व ? दीवाली कहाँ ?
हम सब मनुजता की कसौटी,पर चलो खुद को कसें |
इक बार अपनी सभ्यता पर, ठह-ठहा करके हँसें |
हर वर्ष क्या रावण जलाने ,से कलुष मिट जाएगा ?
याकि फिर दीपक जलाने से, तमस कट जाएगा ?
बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |
बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
ReplyDeleteआगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |
ये काव्यलोक से उतरा काव्य. सच्ची देश भक्ति का तत्त्व बताती और उसका ख़ाका खींचती ओजपूर्ण कविता. बहुत बढ़िया सुरेंद्र जी.
बहुत जरूरी संकल्प ...बहुत बढ़िया रचना ! शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर छंद बद्ध प्रस्तुति सुरेन्द्र भाई। बधाई। सृजन का सुंदर उदाहरण पेश कर रही है यह पोस्ट।
ReplyDeleteसुन्दर रचना, प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें .
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteफन-धारियों ने डँस लिया,सरसब्ज हिन्दुस्तान को ।
ReplyDeleteवे कर रहे नीलाम हैं अब, मुल्क के सम्मान को ।
घनघोर जंगल-राज जब , छाई घटा काली यहाँ ।
फिर,कौन सा आलोक ? कैसा पर्व ? दीवाली कहाँ ?
यथार्थ का सटीक चित्रण।
दीपक जलाने से तमस कटे या ना कटे..घटेगा तो है ही। हम तो जलायेंगे दीपक। जैसे आपने जो ज्ञान का जो यह दीपक जलाया है, कुछ तो तम कम करेगा।
ReplyDeleteसोते हुओं को जगाने में सक्षम अत्यंत ही ओजपूर्ण कविता.
ReplyDeleteयथार्थ समेटे ओजपूर्ण व्यंग्य विचार रचना गरीबों के प्रति सहानुभूति से संसिक्त भाव से परिमार्जित .बधाई इस श्रेष्ट प्रस्तुति के लिए .
ReplyDeleteयथार्थ समेटे ओजपूर्ण व्यंग्य विचार रचना गरीबों के प्रति सहानुभूति से संसिक्त भाव से परिमार्जित .बधाई इस श्रेष्ट प्रस्तुति के लिए .
ReplyDeleteबस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
ReplyDeleteआगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
बहुत सुन्दर आह्वान
बहुत बढ़िया रचना ! शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteBahut hi behtarin rachna. Lajabab prastuti. Bhavpurn kavya lekhan.
ReplyDeleteअद्भुत छंद सुरेन्द्र भाई...
ReplyDeleteसादर बधाई...
एक हुंकार भरती ओजपूर्ण रचना के लिये बधाई।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी-ओजस्वी ओजपूर्ण रचना प्रस्तुत करने की बधाई,मुझे अच्छी लगी......
ReplyDeleteबस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
ReplyDeleteआगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
bahut hi badhiya
सार्थक सुन्दर आव्हान..
ReplyDeleteगजब की भावनाएं....
ReplyDeleteअत्यंत ओजपूर्ण कविता... सशक्त आव्हान... शुभकामनाये...
ReplyDeleteआपका सशक्त व प्रभावी आह्वाहन ह्रदय को झंकृत कर रहा है. आपको बधाई सुन्दर रचना के लिए..
ReplyDeleteआओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
ReplyDeleteसंसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |
बहुत ही सुंदर..... सार्थक आव्हान
बहुत ही सुन्दर, सामयिक, प्रवाहपूर्ण और ओजमयी प्रस्तुति...बधाई और धन्यवाद
ReplyDeleteफन-धारियों ने डँस लिया,सरसब्ज़ हिन्दुस्तान को |
ReplyDeleteवे कर रहे नीलाम हैं अब, मुल्क के सम्मान को |
घनघोर जंगल-राज जब , छाई घटा काली यहाँ |
फिर,कौन सा आलोक ? कैसा पर्व ? दीवाली कहाँ ?
झंझट जी
कुछ कुछ होता है ..आपकी रचना पढ़कर ,खून में उबाल सा आता है
नि:शब्द कर दिया आपकी भावमयी रचना ने
बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
ReplyDeleteआगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें..
सच है पहले अपनी ताकत को आंके ... फिर आगे बढ़ें ... और कर्म में जुट जाएं ... लाजवाब छंद हैं सभी ...
बहुत सुन्दर एंव सरस रचना है आपकी. ..."फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें" वाकई बहुत सुन्दर एंव लयबद्ध-आभार
ReplyDeleteआओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
ReplyDeleteसंसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |
आशा जगाती और दिशा दिखाती है ये कविता!
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना! आपकी लेखनी को सलाम! ज़बरदस्त प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
ReplyDeleteआगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
....बहुत प्रेरक और सटीक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर रचना..बधाई
प्रेरक रचना।
ReplyDeleteप्रिय सुरेन्द्र सिंह झंझट जी अभिवादन बहुत ही सुन्दर सन्देश ..हर पंक्ति लाजबाब ..सटीक सच कहा आप ने बिना संकल्प लिए और अपने अन्दर झांके खुद को सुधारे बिना ये गहन अँधेरा कभी भी मिटने वाला नहीं है -
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार इस प्यारी कृति के लिए
शुक्ल भ्रमर 5
बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
ReplyDeleteसंसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा...
Very inspiring and motivating creation .
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surendra ji mai bilkul swasth hu. bus thoda busy hu. abhi ghar bana raha hu isliye samay nahi mil pata hai. jaise hi waqt milega aaplogo ke nazdik hazir ho jaunga. aapne meri sudh li iske liye apka bahut bahut sukriya. asha hai yu hi aapka pyra or ashirwad milta rahega. dhanyad
ReplyDeleteगज़ब अभिव्यक्ति .....बेहतरीन शब्द सामर्थ्य ... !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
Very nice creation Surendra Ji.. Very nice lesson and resolution... Thanks...
ReplyDeleteबस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
ReplyDeleteआगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
वाह! बहुत सुन्दर भाव हैं,जो मन को झकजोरते हैं.
स्वयं में झाँकना हमारा प्रथम कर्तव्य है.
मेरे ब्लॉग पर 'नाम जप' के बारे में अपने अमूल्य
विचार और अनुभव प्रस्तुत कर अनुग्रहित कीजियेगा.
आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
ReplyDeleteसंसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |
बहुत सुंदर संकल्प !!
बहुत खूब.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..
sandeshprad aur vichaarpurn rachna...
ReplyDeleteहर वर्ष क्या रावण जलाने ,से कलुष मिट जाएगा ?
याकि फिर दीपक जलाने से, तमस कट जाएगा ?
shubhkaamnaayen.
आज की आवश्यकता यही है। दीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
ReplyDeleteसंसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे
khoobsoorat sandesh.......
आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
ReplyDeleteसंसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |
बहुत सुन्दर !!
जी हाँ और इसके लिए जरुरी है एक विचार का होना
आपकी ख्यालात से पूरी तरह सहमत
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !
बहुत ही सकारात्मक व देशप्रेम से ओत-प्रोत कविता,जय हिंद
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