संग-सँग राँझा चलें , हीर चलें |
चल मेरे मीत नदी -तीर चलें |
चलें कुंजों की घनी छावों में |
प्यार के रंग भरे गाँवों में |
मस्त भँवरे हैं, गुनगुनाते हैं |
रस में डूबे हैं , गीत गाते हैं |
दिल की तनहाइयों को चीर, चलें |
समां बसंत की सुहानी है |
जहाँ महकती रातरानी है |
चाँदनी धरा-तल पे बिखरी है |
रूप की धवलपरी उतरी है |
ऐसे में मन को कहाँ धीर ? चलें |
परिंदे प्रेम-धुन सुनाते हैं |
सैकड़ों तारे मुस्कराते हैं |
लताएँ झूम-झूम जाती हैं |
डालियाँ चूम-चूम जाती हैं |
प्यार के डोर बंधी पीर, चलें |
सिर्फ हरियाली ही हरियाली है |
हाय, कैसी छटा निराली है !
कोई बंदिश है ना बहाना है |
एक दूजे में डूब जाना है |
आज हम तोड़ के जंजीर चलें |
चल मेरे मीत नदी -तीर चलें |
चलें कुंजों की घनी छावों में |
प्यार के रंग भरे गाँवों में |
मस्त भँवरे हैं, गुनगुनाते हैं |
रस में डूबे हैं , गीत गाते हैं |
दिल की तनहाइयों को चीर, चलें |
समां बसंत की सुहानी है |
जहाँ महकती रातरानी है |
चाँदनी धरा-तल पे बिखरी है |
रूप की धवलपरी उतरी है |
ऐसे में मन को कहाँ धीर ? चलें |
परिंदे प्रेम-धुन सुनाते हैं |
सैकड़ों तारे मुस्कराते हैं |
लताएँ झूम-झूम जाती हैं |
डालियाँ चूम-चूम जाती हैं |
प्यार के डोर बंधी पीर, चलें |
सिर्फ हरियाली ही हरियाली है |
हाय, कैसी छटा निराली है !
कोई बंदिश है ना बहाना है |
एक दूजे में डूब जाना है |
आज हम तोड़ के जंजीर चलें |
प्यार के डोर बंधी पीर, चलें |
ReplyDeleteसुन्दर और खरी सच्चाई!
सुन्दर गीत!
ऐसे में मन को कहाँ धीर ? चलें |
ReplyDeleteबहुत बढि़या ।
चलें कुंजों की घनी छावों में |
ReplyDeleteप्यार के रंग भरे गाँवों में |
मस्त भँवरे हैं, गुनगुनाते हैं |
रस में डूबे हैं , गीत गाते हैं |
bahut hi badhiyaa
समां बसंत की सुहानी है |
ReplyDeleteजहाँ महकती रातरानी है |
चाँदनी धरा-तल पे बिखरी है |
रूप की धवलपरी उतरी है |
वाह ....खूबसूरत पंक्तियाँ
आपकी रचना से फिल्म पाकीज़ा का गीत याद आ गया: "चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो....."
ReplyDeleteनीरज
हमेशा की तरह बेमिशाल रचना
ReplyDeleteप्यारा गीत
शुभकामनाये
Bahut bhadhiya prastuti! congrats!
ReplyDeleteसिर्फ हरियाली ही हरियाली है |
ReplyDeleteहाय, कैसी छटा निराली है !
कोई बंदिश है ना बहाना है |
एक दूजे में डूब जाना है |
बहुत प्यारा गीत रच डाला बधाई ........
बहुत अच्छी एवं रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद
आय हाय..! कासे कहूँ..! कासे गीत यह गुनगुनाऊँ!...सुनाऊँ..! कासे कहूँ..!
ReplyDelete..मस्त कर दिये भाई।
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteचलें कुंजों की घनी छावों में |
ReplyDeleteप्यार के रंग भरे गाँवों में |
मस्त भँवरे हैं, गुनगुनाते हैं |
रस में डूबे हैं , गीत गाते हैं |
बहुत सुन्दर गीत...
प्रवाहमयी सुंदर कविता. प्रकृति के साथ गुँथे भाव बहुत अच्छी तरह संप्रेषित हुए.
ReplyDeleteचलें कुंजों की घनी छावों में |
ReplyDeleteप्यार के रंग भरे गाँवों में |
मस्त भँवरे हैं, गुनगुनाते हैं |
रस में डूबे हैं , गीत गाते हैं |
Waah !! bahut sunder geet.
मन -मयूर नाच उठा सुन्दर गीत पर.
ReplyDeleteचलें कुंजों की घनी छावों में |
ReplyDeleteप्यार के रंग भरे गाँवों में |
मस्त भँवरे हैं, गुनगुनाते हैं |
रस में डूबे हैं , गीत गाते हैं |
बहुत खूब ....चलो सजना जहाँ तक घटा चले ...
Bahut achhi kavita,sundar bhaav !
ReplyDeleteचाँदनी धरा-तल पे बिखरी है |
ReplyDeleteरूप की धवलपरी उतरी है |
ऐसे में मन को कहाँ धीर ? चलें |
सरस गेय और सुमधुर प्रेममयी कविता भैया ..बहुत सुंदर !
परिंदे प्रेम-धुन सुनाते हैं ।
ReplyDeleteसैकड़ों तारे मुस्कराते हैं ।
लताएँ झूम-झूम जाती हैं ।
डालियाँ चूम-चूम जाती हैं ।
कोमल, मधुर, मनभावन गीत...।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteप्रेम पथ पर चलते हुए सारी सृष्टि का सौंदर्य आँखों में समा जाता है.बहुत सौंदर्यपूर्ण कविता.
ReplyDeleteझंझट की प्रेम धुन सुन लीजे
बन भ्रमर मकरंद चुन लीजे
प्रेम का नगर यहीं बसाना है
स्वर्ग सा दृश्य यहाँ सुहाना है.
मीत अब न कहना,काश्मीर चलें...
चल मेरे मीत, नदी तीर चलें......
दिल की तनहाइयों को चीर, चलें |बहुत बढि़या |
ReplyDeleteदिल की तनहाइयों को चीर, चलें |बहुत बढि़या |
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियाँ
ReplyDeleteदिल की तनहाइयों को चीर, चलें |
ReplyDeleteसुन्दर गीत!
बहुत सुन्दर .... दिल की तनहाइयों को चीर चले...
ReplyDeleteReally very nice song! Congrats!
ReplyDeleteसुन्दर गीत मनोहर गीत गेय और सांगीतिक लय ताल लिए .भाव और माधुर्य की बयार लिए .
ReplyDeleteपरिंदे प्रेम-धुन सुनाते हैं |
ReplyDeleteसैकड़ों तारे मुस्कराते हैं |
लताएँ झूम-झूम जाती हैं |
डालियाँ चूम-चूम जाती हैं |
बहुत सुंदर शाब्दिक श्रृंगार लिए पंक्तियाँ ...... बहुत बढ़िया
मनमोहक प्रकृति चित्रण.
ReplyDeleteआज दोबारा पढ़ा और गुनगुनाया भी। सुंदर सुंदर सुंदर। धीर - चलें ; बहुत खूब। बधाई सुरेन्द्र भाई।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रकृति का सुंदर चित्रण,आपकी
ReplyDeleteयह रचना पाकीजा फिल्म के एक गाने
की याद दिलाती है सुंदर पोस्ट,...
मेरे पोस्ट में आकार अपने विचार देने के लिए,
दिल से आभार,शुक्रिया...
परिंदे प्रेम-धुन सुनाते हैं |
ReplyDeleteसैकड़ों तारे मुस्कराते हैं |
लताएँ झूम-झूम जाती हैं |
डालियाँ चूम-चूम जाती हैं |
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति... !
आज हम तोड़ के जंजीर चलें |
ReplyDeleteसुंदर गीत
bhawon men sunder lay bandha hai......
ReplyDelete" कोई बंदिश है ना बहाना है |
ReplyDeleteएक दूजे में डूब जाना है |"
बहुत ही सुन्दर हवा के रंग ! बिना भेद - भाव के !
ReplyDelete♥
प्रिय सुरेन्द्र सिंह "झंझट" जी
सस्नेहाभिवादन !
प्यारा गीत है
सिर्फ हरियाली ही हरियाली है |
हाय, कैसी छटा निराली है !
कोई बंदिश है ना बहाना है |
एक दूजे में डूब जाना है |
आज हम तोड़ के जंजीर चलें |
श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
परिंदे प्रेम-धुन सुनाते हैं
ReplyDeleteसैकड़ों तारे मुस्कराते हैं
लताएँ झूम-झूम जाती हैं
डालियाँ चूम-चूम जाती ह
वाह प्रेम की उन्मुक्त बयार बह रही है ...
सिर्फ हरियाली ही हरियाली है |
ReplyDeleteहाय, कैसी छटा निराली है !
कोई बंदिश है ना बहाना है |
एक दूजे में डूब जाना है |
आज हम तोड़ के जंजीर चलें |
manbhaawan rachna...
.
खूबसूरत पंक्तियों से सजी भावपूर्ण कविता...
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी,
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट आपका इंतज़ार है,....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteवाह!! आनन्द आ गया...बहुत खूब!!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण गीत ! सुन्दर प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
मस्त मस्त सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढकर मन मग्न हुआ जी.
बहुत बहुत आभार.
परिंदे प्रेम-धुन सुनाते हैं |
ReplyDeleteसैकड़ों तारे मुस्कराते हैं |
लताएँ झूम-झूम जाती हैं |
डालियाँ चूम-चूम जाती हैं |
प्यार के डोर बंधी पीर, चलें |waah
zabardast.
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